क्या दुनिया में चलेगा भारत का ‘सिक्का’? रुपए की बढ़ रही विदेश में ताकत

Will India's 'coin' work in the world? The strength of the rupee is increasing abroad

बीते कुछ सालों में हर मोर्चे पर भारत की ताकत में इजाफा देखने को मिला है. जहां भारत दुनिया की सबसे तेज ग्रोथ करने वाली इकोनॉमी बना हुआ है. वहीं दूसरी ओर भारत का शेयर बाजार दुनिया का 5वां सबसे बड़ा शेयर बाजार है. कुछ महीनों को छोड़ दिया जाए तो शेयर बाजार पर विदेशी निवेशकों का प्यार लगातार बरसता है. इन दोनों के अलावा भारत की करेंसी रुपए का भी अंतर्राष्ट्रीयकरण देखने को मिला है. इसका मतलब है कि कई देशों के साथ व्यापार समझौतों और एक्सचेंज एग्रीमेंट्स के लिए रुपए के क्रॉस बॉर्डर यूज की बात कर रहा है.

खास बात तो ये है कि देश के बैंकिंग रेगुलेटर आरबीआई ने भारतीय बैंकों को पड़ोसी देशों को रुपये में लोन देने की अनुमति दी है और नेशनल करेंसी में ट्रेड इनवॉयसिंग को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहा है. सिंगापुर, रूस और संयुक्त अरब अमीरात के साथ हाल के एग्रीमेंट्स ने रुपए में सेटलमेंट के ऑप्शंस को व्यापक बनाया है और विदेशी बैंकों को वोस्ट्रो अकाउंट्स खोलने की अनुमति दी गई है, जिससे विदेशी संस्थाएं घरेलू बैंकों के साथ रुपए में डिनोमिनेटिड अकाउंट्स रख सकेंगी.

वैसे रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण थोड़े नेगेटिव हालातों में देखने को मिला है. हाल के दिनों में अमेरिका ने भारत पर 50 फीसदी का टैरिफ लगाया है. जिसकी वजह से रुपए में काफी कमजोरी देखने को मिली है. जिसका असर इकोनॉमी पर भी देखने को मिला है. अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या भारत की करेंसी एक बड़ी ताकत के रूप में उभर सकती है? क्या रुपए में वो ताकत है जिससे वो अमेरिका और चीन जैसी करेंसी का सामना कर सकती है? रुपए की ताकत बढ़ने से भारत को इंटरनेशनल लेवल पर क्या फायदा हो सकता है? आइए इसे विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं.

https://googleads.g.doubleclick.net/pagead/ads?gdpr=0&us_privacy=1—&gpp_sid=-1&client=ca-pub-8026344667941318&output=html&h=392&adk=1403371785&adf=3797681438&w=392&lmt=1756316128&num_ads=1&rafmt=1&armr=3&sem=mc&pwprc=3095812910&ad_type=text_image&format=392×392&url=https%3A%2F%2Fvedantsamachar.in%2Fwill-indias-coin-be-in-the-world-increasing-strength-in-foreign-countries%2F&host=ca-host-pub-2644536267352236&fwr=1&pra=3&rh=294&rw=352&rpe=1&resp_fmts=3&sfro=1&wgl=1&fa=27&uach=WyJBbmRyb2lkIiwiMTUuMC4wIiwiIiwiVjIyMzkiLCIxMzkuMC43MjU4LjE0MyIsbnVsbCwxLG51bGwsIiIsW1siTm90O0E9QnJhbmQiLCI5OS4wLjAuMCJdLFsiR29vZ2xlIENocm9tZSIsIjEzOS4wLjcyNTguMTQzIl0sWyJDaHJvbWl1bSIsIjEzOS4wLjcyNTguMTQzIl1dLDBd&abgtt=6&dt=1756316129143&bpp=8&bdt=1875&idt=-M&shv=r20250825&mjsv=m202508250101&ptt=9&saldr=aa&abxe=1&cookie=ID%3D71c1e474026317c6%3AT%3D1753335725%3ART%3D1756316129%3AS%3DALNI_MYBQW46sKyYm87EvrQLFQdUmjdrUg&gpic=UID%3D0000116d0838148c%3AT%3D1753335725%3ART%3D1756316129%3AS%3DALNI_MYqGvn9QiSQDpUsrRfK1hDEToznBw&eo_id_str=ID%3Ddace12ac6aa722ce%3AT%3D1753335725%3ART%3D1756316129%3AS%3DAA-Afjag1Swi3TbzgHwnptCC0EMp&prev_fmts=0x0%2C393x200%2C392x392&nras=4&correlator=8419128349652&frm=20&pv=1&u_tz=330&u_his=1&u_h=873&u_w=393&u_ah=873&u_aw=393&u_cd=24&u_sd=2.75&dmc=8&adx=0&ady=2269&biw=392&bih=742&scr_x=0&scr_y=237&eid=31094299%2C95362656%2C95368289%2C95369706%2C95369798%2C95370341%2C31094318%2C95359265&oid=2&pvsid=8559604264163665&tmod=1405659938&uas=3&nvt=1&fc=1408&brdim=0%2C0%2C0%2C0%2C393%2C0%2C393%2C743%2C393%2C743&vis=1&rsz=%7C%7Cs%7C&abl=NS&fu=1152&bc=31&bz=1&td=1&tdf=2&psd=W251bGwsW251bGwsbnVsbCxudWxsLCJkZXByZWNhdGVkX2thbm9uIl0sbnVsbCwzXQ..&nt=1&pgls=CAEaBTYuOC4y~CAEQBBoHMS4xNjAuMQ..~CAEQBRoGMy4zMS4y&bisch=0&blev=0.66&ifi=4&uci=a!4&btvi=2&fsb=1&dtd=694

जब खाड़ी देशों में चलता था रुपया
फोर्ब्स की रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेशनल रुपए का कांसेप्ट कोई नया नहीं है या फिर दूर की कौड़ी नहीं है जितनी दिखाई देती है. इस फैक्ट की जानकारी बेहद कम लोगों को होगी कि 1950 और 1960 के दशक के अधिकांश समय में संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, कुवैत और कतर जैसे खाड़ी देशों में रुपया ऑफिशियल करेंसी मुद्रा थी. रुपया भूटान में अभी भी एक लीगल करेंसी बनी हुई है और नेपाल में व्यापक रूप से स्वीकार्य है. “खाड़ी रुपये” का उपयोग उस समय किया गया था जब भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी इकोनॉमी नहीं था और मौजूदा हालातों के मुकाबले में काफी कमजोर था. यह भी तर्क दिया जा सकता है कि दक्षिण एशिया के भीतर और मिडिल ईस्ट तथा अफ़्रीका में, एक स्पेशल “इंडोस्फेरिक” इकोनॉमिक जोन है, जहां इंटरनेशनल ट्रांजेक्शन में केवल रुपए यूज बढ़ने वाला है.

भारत और चीन की सोच में अंतर
चीन और साउथ एशियाई पड़ोसियों के समान स्तर पर न होते हुए भी, भारत एक बड़ी व्यापारिक शक्ति है जिसका निर्यात और आयात पिछले वर्ष कुल 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक था. भले ही इस व्यापार का एक मामूली हिस्सा रुपये में हो, इससे भारतीय आयातकों को लाभ होगा (फॉरेन करेंसी रिस्क कम करके) और दूसरे देशों को अधिक भारतीय वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा. यह एक ऐसी रणनीति है जिसका इस्तेमाल चीन ने पिछले एक दशक में रेनमिनबी के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए किया है, जिसमें क्रॉस बॉर्डर इंतर-बैंक पेमेंट सिस्टम (CIPS) की स्थापना भी शामिल है.

चीन की तरह, भारत भी निकट भविष्य में कैपिटल कंट्रोल में ढील देने और रुपये को अस्थिर करने की कोई संभावना नहीं है. हालांकि, भारत और चीन के दृष्टिकोण में भी काफी अंतर है. आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ​​ने जोर देकर कहा है कि रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य दुनिया की रिजर्च करेंसी के रूप में डॉलर की जगह लेना नहीं है, जो कि चीन की निश्चित रूप से एक महत्वाकांक्षा है. भारत ने ब्रिक्स करेंसी शुरू करने के रूसी-चीनी प्रस्ताव का भी विरोध किया है.

कुछ ऐसी हो सकती है रुपए की प्लानिंग
भारत अन्य तरीकों से भी चीन को फॉलो कर सकता है. चीन के यूनियनपे की तरह, वह अपने रुपे कार्ड प्लेटफॉर्म के क्रॉस बॉर्डर यूज का और विस्तार कर सकता है, जिससे विदेश यात्रा करने वाले भारतीय रुपए में प्रोडक्ट्स और सर्विसेज का पेमेंट कर सकेंगे. समय के साथ, जैसे-जैसे इंटरनेशनल रुपया विश्वसनीयता और प्रभाव प्राप्त करेगा, उसे आईएमएफ के विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) करेंसी बास्केट में भी जगह मिल सकती है, जिसमें वर्तमान में डॉलर, पाउंड, यूरो और येन के साथ रेनमिनबी भी शामिल है. अति सतर्क आरबीआई के लिए, यह निश्चित रूप से अल्टीमेट प्राइज हो सकता है.