योगेश गोस्वामी की रिपोर्ट
केशकाल /बस्तर अंचल की आस्था और परंपरा का अद्भुत नजारा गत दिनों केशकाल, मांझीनगढ़ और कारी पानी-कुर्सी घाट में देखने को मिला।
यहां हर साल की तरह इस बार भी देवी-देवताओं का जातरा और अदालत लगी, जिसमें इंसानों की तरह देवी-देवताओं पर भी आरोप-प्रत्यारोप होते हैं और फैसले सुनाए जाते हैं। आस पास के सभी गावों से ग्रामवासी अपने देवी देवताओं के साथ आते है अदालत मे
कहा जाता है कि इस परंपरा की शुरुआत बस्तर राजघराने के समय हुई थी। जातरा के दिन तीनों स्थानों पर दूर-दराज़ गांवों से देवी-देवता अपने पुजारियों, मांझी-मुखियाओं और भक्तों के साथ पहुंचते हैं। हजारों की भीड़ जब पहाड़ों और जंगलों के बीच उमड़ती है, तो आस्था का अद्भुत माहौल बन जाता है।
देवी-देवताओं की अदालत में इंसानी अदालत की तरह सुनवाई होती है। फरियादी इंसान होता है, जबकि आरोपी के रूप में देवी-देवता पेश होते हैं। अपराध सिद्ध न होने पर बरी कर दिया जाता है और दोषी पाए जाने पर सजाएं दी जाती हैं—कभी पूजा-पाठ से वंचित रहना पड़ता है, कभी कारावास जैसी सजा, और कभी मृत्यु दंड तक।
यह आयोजन बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर और लोक आस्था का जीवंत प्रतीक है, जो ग्रामीण अंचल की परंपरा और विश्वास की गहराई को दर्शाता है।
जातरा में गांववासी सेवा में चावल, तेल, हल्दी, धूप-फूल चढ़ाए जाते हैं, जबकि रवाना में मुर्गी का बच्चा आदि होता है जिसे बुराई और अनिष्टकारी शक्तियों को दूर करने के प्रतीक के रूप में अर्पित किया जाता है। महिलाओं का प्रवेश जातरा के दिन वर्जित रहता है। माना जाता है कि यह परंपरा उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखकर बनाई गई है, ताकि अनिष्टकारी शक्तियों का असर उन पर न पड़े।
खान देव: सौहार्द का प्रतीक
जातरा स्थल पर डॉक्टर खान देव की भी पूजा होती है। किंवदंती है कि वे चिकित्सक थे और लोगों का इलाज करते थे। मृत्यु के बाद उन्हें देव मानकर प्रतिष्ठित किया गया। अब उन्हें महामारी से बचाने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है और अंडा चढ़ाया जाता है।







