स्मार्ट बिजली मीटर परियोजना: हंगामा स्मार्ट मीटर उखाड़ कर सड़क पर उतरे

Smart Electricity Meter Project: People protested by uprooting smart meters and taking to the streets

भारत में स्मार्ट बिजली मीटर परियोजना को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। दक्षिण मुंबई में बेस्ट ने स्मार्ट मीटर लगाने का काम स्थगित कर दिया है, जबकि रांची और बिहार में उपभोक्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया है। उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण निगम ने अडानी समूह के स्मार्ट मीटर टेंडर को निरस्त कर दिया है।

उपभोक्ताओं का आरोप है कि स्मार्ट मीटर से बिजली बिल दोगुने और तिगुने हो गए हैं। वे पुराने मीटरों को ही लगाने की मांग कर रहे हैं। विभिन्न राज्यों की विद्युत वितरण कंपनियां भी इस परियोजना के पक्ष में नहीं हैं।

केंद्र सरकार का कहना है कि यह परियोजना बिजली क्षेत्र के आधुनिकीकरण के लिए जरूरी है, लेकिन उपभोक्ताओं को इसका विरोध नहीं करना चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि यदि पुराने और नए मीटरों में कोई अंतर नहीं है, तो 2.80 लाख करोड़ रुपयों को खर्च करने की कवायद क्यों की जा रही है?

असली मामला है बिजली क्षेत्र के निजीकरण का और कॉरपोरेट कंपनियों के लिए बाजार बनाने का। इन मीटरों को प्री-पेड योजना से जोड़ा जा रहा है, जिससे उपभोक्ताओं को पहले रिचार्ज करना होगा। बिजली वितरण और इसकी दरों को निर्धारित करने का काम भी अडानी और टाटा की कॉरपोरेट कंपनियां ही करेगी।

इस परियोजना के विरोध में पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे हैं। उपभोक्ताओं को महंगी बिजली का सामना करना पड़ेगा, जबकि गरीब और किसान सस्ती बिजली के अधिकार से वंचित होंगे।

क्या यह परियोजना देश के हित में है? क्या यह परियोजना आम जनता के लिए फायदेमंद है? इन सवालों का जवाब ढूंढना जरूरी है।