- झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, गोवा और छत्तीसगढ़ राज्य की कुल 102.99 मिलियन टन प्रतिवर्ष (MTPA) उत्पादन क्षमता की 13 कोयला खदानें इसी मॉडल पर संचालित है,
- 714.4 MTPA क्षमता की 80 से अधिक संसाधनों के लिए के लिए अनुबंध की प्रक्रिया जारी है,
रायपुर; 31 मार्च 2024: भारत में कोयला खनन क्षेत्र में विकास का सालों पुराना इतिहास रहा है। कोयला भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और इसके खनन का क्षेत्र देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है। पूर्व काल में, भारत में कोयले का खनन अप्रभावी और प्राचीन तकनीकों पर आधारित था। इससे न सिर्फ समय और कर्मचारियों का जीवन दांव में लगता था बल्कि बहुत बड़े स्तर में निवेश की आवश्यकता पड़ती थी।
दरअसल भारत सरकार ने 01 मई 1973 को कोयला खदान अधिनियम, 1973 के अधिनियमन के साथ कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया। जिसने भारत में कोयला खनन की पात्रता निर्धारित की। किन्तु इसे ‘न तो एक सुनियोजित, न ही एक सचेत समाजवादी अधिनियम’ कहा गया जिसके लिए इसकी अत्यधिक आलोचना की जाने लगी और इसे अक्सर एक गलत धारणा वाला कानून कहा गया क्योंकि इससे कोयला खनन में केंद्र सरकार का एकाधिकार बन गया था। कोयला खदान के विशेष प्रावधान के तहत संसद ने वर्ष 2015 में ‘कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम 2015 को अधिनियमित किया। इसके तहत निर्धारित कोयला खदानों के आवंटन, भूमि और खदान के बुनियादी ढांचे पर अधिकार, स्वामित्व और हित निहित करने के लिए सार्वजनिक नीलामी के माध्यम से और कोयला खदानों के लाइसेंस और पट्टे का पूर्व तरीके से निर्वहन करते हुए कोयला ब्लॉकों का आवंटन, नियमों और शर्तों के अधीन किया गया। इससे आधुनिक युग में, तकनीकी उन्नति और नई तकनीकों के प्रयोग से खनन सेक्टर में क्रांति आई है। वहीं समय के साथ इसके खनन संबंधी पारंपरिक मॉडल में भी बदलाव को भी स्वीकार किया गया।
वर्तमान में, भारत कोयला खनन में विशेषज्ञता और नवाचार का केंद्र बन गया है जो कि नए और आधुनिक खनन तकनीकों के प्रयोग से खनन प्रक्रिया को सुगम और सुरक्षित बनाने का रिकार्ड दिन प्रतिदिन बना रहा है। वहीं नवाचार की दृष्टि से माइन डेवलपर और ऑपरेटर (एमडीओ) मॉडल भी ज्यादातर सार्वजनिक उपक्रमों में आज एक सुगम मॉडल बनकर उभर रहा है। आखिर क्या है यह मॉडल आइए जानते हैं..
माइन डेवलपर और ऑपरेटर (एमडीओ) मॉडल
माइन डेवलपर और ऑपरेटर (एमडीओ) भारत में अपनाया गया खदानों के विकास और संचालन का एक मॉडल है। जो कि खनन क्षेत्र में सीमित संसाधनों के कारण अपनाया गया। इससे उत्पादन स्तर पर असर तो पड़ता ही है साथ ही उत्पादन में जरूरी उपाय और कुशल तकनीक सहित लागत एवं पूंजी प्रबंधन भी बेहतर होती है। वहीं सार्वजनिक उपक्रमों को न तो कोई निवेश,न कोई जमीन संबंधी पचड़े और न ही कर्मचारियों संबंधी किसी दायित्वों के निर्वहन की आवश्यकता होती है। यानि आम के आम और गुठलियों के भी दाम की कहावत इस मॉडल में चरितार्थ होती है