नगर पालिका बैठकों में “जनप्रतिनिधि” बनकर बैठ रहे SECL कर्मचारी गोवर्धन कंवर, उठे गंभीर सवाल – जनता ने की उच्चस्तरीय जांच की मांग

El empleado de SECL, Govardhan Kanwar, se sienta como "representante público" en las reuniones municipales, se plantearon serias preguntas: el público exigió una investigación de alto nivel.

कोरबा। नगर पालिका की बैठकों में लगातार एक बड़ा विवाद चर्चा का विषय बना हुआ है। मामला SECL कुसमुंडा परियोजना से जुड़ा है, जहां डीजल सेक्शन वर्कशॉप (नं. 3) में पदस्थ डंपर ऑपरेटर गोवर्धन कंवर पर आरोप है कि वे नगर पालिका की बैठकों में जनप्रतिनिधि के रूप में शामिल हो रहे हैं। यह स्थिति न केवल चौंकाने वाली है बल्कि कई गंभीर सवाल खड़े करती है।

सबसे अहम सवाल यह है कि – क्या किसी सरकारी/संस्थान के कर्मचारी को दूसरी संस्था में जनप्रतिनिधि की हैसियत से बैठने का अधिकार है? यदि हां, तो यह अनुमति किसने दी? और यदि नहीं, तो क्या यह सीधे-सीधे प्रशासनिक लापरवाही और नियमों का उल्लंघन नहीं है?

जनता में आक्रोश, पारदर्शिता पर सवाल :
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पूरा प्रकरण नियमों और पारदर्शिता का मजाक है। जब एक कर्मचारी नगर पालिका की बैठकों में जनप्रतिनिधि बनकर शामिल होगा तो असली प्रतिनिधियों की भूमिका गौण हो जाएगी और जनता की समस्याओं पर गंभीर चर्चा भी प्रभावित होगी। कई लोगों का मानना है कि यह “जनता की आंखों में धूल झोंकने” जैसा है।

सफाई व्यवस्था और लापरवाह ठेकेदार पहले से ही मुद्दा :
नगर पालिका क्षेत्र में सफाई व्यवस्था की बदहाली और ठेकेदारों की मनमानी पहले से ही लोगों की नाराजगी का कारण बनी हुई है। जगह-जगह कचरे के ढेर, गली-मोहल्लों में गंदगी और मच्छरों के प्रकोप से जनता परेशान है। ऐसे समय में नगर पालिका बैठकों में एक सरकारी कर्मचारी को जनप्रतिनिधि के तौर पर बैठाना लोगों के गुस्से को और बढ़ा रहा है।

जनता की मांग – जांच और कार्रवाई जरूरी :
जनता खुले तौर पर यह मांग कर रही है कि इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए। यह स्पष्ट किया जाए कि गोवर्धन कंवर किस अधिकार से नगर पालिका की बैठकों में बैठ रहे हैं। यदि यह कार्यवाही नियमविरुद्ध पाई जाती है, तो संबंधित अधिकारियों और जिम्मेदार कर्मचारियों पर कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिए।

प्रशासन पर निगाहें :
अब लोगों की निगाहें प्रशासन पर टिकी हैं कि वह इस प्रकरण पर कब तक चुप्पी साधे रहेगा। क्या जिम्मेदार अधिकारी नियमों को ताक पर रखकर ऐसे मामलों को नजरअंदाज करेंगे या जनता की आवाज सुनकर ठोस कदम उठाएंगे?
यह विवाद न केवल नगर पालिका की विश्वसनीयता बल्कि शासन-प्रशासन की पारदर्शिता और जवाबदेही की भी कड़ी परीक्षा बन गया है।