ऑस्ट्रेलिया की धरती, भारत की रणनीतिजियो-पॉलिटिक्स और इकोनॉमिक पावर के नए केंद्र बन चुके हैं पोर्ट

Australia's land, India's strategy, ports have become the new centers of geo-politics and economic power

क्या भारत अब सिर्फ ‘बाजार’ नहीं, बल्कि ‘मार्गदर्शक’ भी बन रहा है? भारत के सबसे बड़े पोर्ट ऑपरेटर ने अदाणी पोर्ट्स ने ऑस्ट्रेलिया के नॉर्थ क्वींसलैंड एक्सपोर्ट टर्मिनल को फिर से अपने बेड़े में शामिल करने की घोषणा कर दी है। 2.4 अरब अमेरिकी डॉलर के इस सौदे में नकद का लेन-देन नहीं होगा। इसकी जगह अदाणी समूह की कंपनी कारमाइकल रेल और पोर्ट सिंगापुर होल्डिंग्स को 14.35 करोड़ नए शेयर देगा, जिससे प्रमोटर की हिस्सेदारी 2.12% बढ़ेगी।


लेकिन असल कहानी इससे कहीं बड़ी और दूरगामी है। यह सौदा भारत की उस सोच का हिस्सा है, जहां व्यापार केवल सीमा के भीतर सीमित नहीं रह गया है। ऑस्ट्रेलिया के उत्तर में स्थित यह बंदरगाह एक तरह से भारत के लिए पश्चिम से पूर्व तक व्यापार के गलियारों में प्रवेश का महत्वपूर्ण द्वार है। इसका 90% कार्गो एशियाई देशों – खासकर भारत और चीन से जुड़ा है। यह वही ‘पावर प्ले’ है जो इसे अदाणी समूह की वैश्विक रणनीति में फिट बैठाता है। यह टर्मिनल बोवेन और गैलीली कोल माइंस से सीधे जुड़ा है, जिससे ऊर्जा और संसाधनों का प्रवाह निर्बाध रहता है। आगे चलकर, यही टर्मिनल ग्रीन हाइड्रोजन जैसे स्वच्छ ईंधनों के निर्यात में भी बड़ी भूमिका निभा सकता है।
आज के समय में पोर्ट्स केवल जहाजों और कंटेनरों के ठहरने की जगह नहीं हैं। वे भू-राजनीतिक और आर्थिक शक्ति के नए केंद्र बन चुके हैं। जब ब्लैकरॉक जैसी दिग्गज कंपनियां पनामा और अन्य बंदरगाहों में अरबों डॉलर निवेश कर रही हैं, तो यह साफ है कि जिसके पास बंदरगाह हैं, उसके पास शक्ति है। अदाणी पोर्ट्स का यह कदम भारत को उसी शक्ति के केंद्र में लाने की कोशिश है।


दिलचस्प बात यह है कि नॉर्थ क्वींसलैंड एक्सपोर्ट टर्मिनल पहले भी अदाणी समूह के पास था। 2011 में खरीदा गया, 2013 में प्रमोटर को सौंप दिया गया, ताकि कंपनी घरेलू विस्तार पर ध्यान केंद्रित कर सके। अब, जब भारत की ताकत पहले से कहीं ज्यादा है तो कंपनी इस पोर्ट को सिर्फ वापस नहीं ले रही, बल्कि रणनीतिक रूप से और भी मजबूत बना रही है। इसका संयमित वैल्यूएशन पर किया गया है, जो क्षेत्रीय स्तर पर एक समझदारी भरा कदम है। इस सौदे के साथ अब अदाणी पोर्ट्स के पास कुल 19 बंदरगाह होंगे – जिनमें से 4 विदेशी है- इज़राइल, श्रीलंका, तंज़ानिया और अब ऑस्ट्रेलिया शामिल है, यह सब भारत की उस नीति के अनुरूप है जिसमें हम उन्हीं जगहों पर निवेश कर रहे हैं जो भारतीय व्यापारिक हितों से मेल खाती हैं।


ऑस्ट्रेलिया एक ऐसा देश है जहां चीनी निवेश पहले से ही 9 अरब डॉलर के पार है। ऐसे में भारत की मजबूत मौजूदगी वहां केवल संतुलन बनाए रखने की बात नहीं, बल्कि भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा, कच्चे माल की आपूर्ति और हरित ईंधन के रास्ते भारत की भागीदारी सुनिश्चित करने की पहल है। अदाणी पोर्ट्स का यह अधिग्रहण केवल वॉल्यूम या मुनाफे की बात नहीं है। यह भारत की उस सोच का प्रतीक है जो अब स्थानीय नहीं, वैश्विक हो चुकी है। आज भारत उन रास्तों को पक्के कर रहा है जिनसे कल दुनिया चलेगी – व्यापार के रास्ते, ऊर्जा के रास्ते, रणनीति के रास्ते। और हर उस रास्ते पर, अदाणी पोर्ट्स जैसा कोई भारतीय संस्थान परचम लहरा रहा है।