सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन देने पर उठाए सवाल, कहा- कब तक दी जा सकती हैं मुफ्त सुविधाएं?…

The Supreme Court raised questions on providing free ration to migrant labourers, said- till when can free facilities be provided?…

सुप्रीम कोर्ट ने कोविड महामारी के समय से मुफ्त राशन पाने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने और क्षमता निर्माण किये जाने पर सोमवार (09 दिसंबर, 2024) को जोर देते हुए पूछा कि ”कब तक मुफ्त सुविधाएं दी जा सकती हैं.”

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की पीठ उस समय आश्चर्यचकित रह गई, जब केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त या रियायती दर पर राशन दिया जा रहा है. पीठ ने केंद्र की ओर से उपस्थित सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा, ‘‘इसका मतलब है कि केवल करदाता ही इसके दायरे से बाहर रह गए हैं.’’

‘कब तक दी जा सकती हैं मुफ्त सुविधाएं’

वर्ष 2020 में कोविड महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की समस्याओं और दशा से संबंधित स्वत: संज्ञान वाले मामले में एक गैर सरकारी संगठन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि ‘‘ई-श्रम’’ पोर्टल पर पंजीकृत सभी प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने के लिए निर्देश जारी करने की आवश्यकता है. पीठ ने कहा, ‘‘कब तक मुफ्त सुविधाएं दी जा सकती हैं? हम इन प्रवासी श्रमिकों के लिए नौकरी के अवसर, रोजगार और क्षमता निर्माण के लिए काम क्यों नहीं करते?’’

भूषण ने कहा कि इस अदालत की ओर से समय-समय पर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड जारी करने के निर्देश जारी किए गए हैं ताकि वे केंद्र के प्रदान किए जाने वाले मुफ्त राशन का लाभ उठा सकें. उन्होंने कहा कि नवीनतम आदेश में कहा गया है कि जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं, लेकिन वे ‘‘ई-श्रम’’ पोर्टल पर पंजीकृत हैं, उन्हें भी केंद्र से मुफ्त राशन दिया जाएगा.

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘‘यही समस्या है. जिस पल हम राज्यों को सभी प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने का निर्देश देंगे, एक भी प्रवासी श्रमिक यहां नहीं दिखेगा. वे वापस चले जाएंगे. लोगों को लुभाने के लिए राज्य राशन कार्ड जारी कर सकते हैं क्योंकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि मुफ्त राशन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी केंद्र की है.’’ भूषण ने कहा कि अगर जनगणना 2021 में की गई होती, तो प्रवासी श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हो गई होती, क्योंकि केंद्र वर्तमान में 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर है.

पीठ ने कहा, ‘‘हमें केंद्र और राज्यों के बीच विभाजन पैदा नहीं करना चाहिए, अन्यथा यह बहुत मुश्किल हो जाएगा.’’ मेहता ने कहा कि इस अदालत के आदेश मुख्य रूप से कोविड के समय के लिए थे. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि उस समय, इस अदालत ने प्रवासी श्रमिकों के समक्ष आने वाले संकट को देखते हुए, सहायता प्रदान करने के लिए कमोबेश दैनिक आधार पर आदेश पारित किए थे.

‘एनजीओ के आंकड़ों पर नहीं कर सकते भरोसा’

उन्होंने कहा कि सरकार 2013 के अधिनियम से बंधी हुई है और वैधानिक योजना से परे नहीं जा सकती. मेहता ने कहा कि कुछ ऐसे गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) थे जिन्होंने महामारी के दौरान जमीनी स्तर पर काम नहीं किया और वह हलफनामे में बता सकते हैं कि याचिकाकर्ता एनजीओ उनमें से एक है. सुनवाई के दौरान मेहता और भूषण के बीच तीखी नोकझोंक हुई, क्योंकि सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अदालत को ‘‘ऐसे एनजीओ के दिए गए आंकड़ों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, जो लोगों को राहत प्रदान करने के बजाय याचिका का मसौदा तैयार करने और उसे सुप्रीम कोर्ट में दायर करने में व्यस्त था.’’

भूषण ने कहा कि मेहता उनसे नाराज हैं क्योंकि उन्होंने उनसे संबंधित कुछ ई-मेल जारी किए थे, जिसका हानिकारक प्रभाव पड़ा. मेहता ने पलटवार करते हुए कहा, ‘‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह (भूषण) इतने निचले स्तर तक चले जाएंगे, लेकिन जब उन्होंने ईमेल का मुद्दा उठा ही दिया है, तो उन्हें जवाब देने की जरूरत है. उन ईमेल पर अदालत ने विचार किया था. जब कोई सरकार या देश को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, तब वह ऐसी याचिकाओं पर आपत्ति जताने के लिए प्रतिबद्ध हैं.’’

जस्टिश सूर्यकांत ने मेहता और भूषण दोनों को समझाने-बुझाने की कोशिश की और कहा कि प्रवासी श्रमिकों के मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है और इसे 8 जनवरी के लिए सूचीबद्ध कर दिया. शीर्ष अदालत ने 26 नवंबर को मुफ्त राशन के वितरण से जुड़ी कठिनाइयों को चिह्नित किया और कहा कि कोविड का समय अलग था जब परेशान प्रवासी श्रमिकों को राहत प्रदान की गई थी.