संविधान बदलने नही देंगे, इस धरती पर हमारा भी रक्त समाहित है : अरुण पन्नालाल

We will not let the constitution be changed, our blood is also present on this land: Arun Pannalal

संविधान की रक्षा के लिए सर्व आदि दल का गठन हुआ है। संवैधानिक प्रावधानो के अनुपालन के प्रति कोई भी दल गंभीर नहीं है : अरुण पन्नालाल*

कोरबा/सर्व आदि दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण पन्नालाल ने पार्टी पदाधिकारियों के साथ कोरबा ने पत्रकार वार्ता लेकर बताया की देश में कोई भी राजनीतिक पार्टियों के द्वारा समाज हित में कार्य नही हो रहा है, खासकर मुसलमान और ईसाई धर्म के लोगों को जानबूझकर टारगेट बनाया जा रहा है। इस अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए सर्व आदि दल का गठन चार महीने पहले ही किया गया है, हमारी ये पार्टी गरीबी और उनकी मूलभूत सुविधाओं पर काम करेगी। उन्होंने बताया की विस्लधनसभ चुनाव में सरगुजा से प्रत्याशी मैदान में थे, पहली बार मैदान में उतरे हमारे प्रत्याशी को लाखों वोट मिले। जिसे देखते हमने इस लोकसभा में पांच प्रत्याशी उतारे, जो दमखम से चुनाव लडेंगे।

आदि दल का ये है मुख्य बिंदु

संविधान लागू होते ही उसका उल्लंघन शुरू हुआ। आकस्मिक परिस्थिति में राष्ट्रपति अध्यादेश लाया जा सकता है, जिसे 7 दिनों के भीतर लोकसभा में रखा जाना आवश्यक है। ऐसे अकास्मिक कानून की मियाद छः माह होती है। 1950 में राष्ट्रपति अध्यादेश के द्वारा मुसलमान, सिख और ईसाईयों का धर्म के आधार पर आरक्षण समाप्त कर दिया गया। लोकसभा के पटल पर आज तक नहीं लाया, जिस कानून को 6 माह में खत्म होना जाना था वो आज भी 75 सालों से लागू है।

पांचवी अनुसूची में आदीवासीयो के स्वशासन के अधिकार लिखा हुआ है, जो मिला ही नहीं। अब ग्राम सभा से ‘अनुमति’ लेने को बदल कर सलाह’ (परामर्श) लेने तक परिवर्तित कर दिया है।

संविधान में समानता का अधिकार है। आदिवासी अगर आधुनिकता और विकास की ओर बढे तो उन्हें मारपीट और अपमान झेलना पड़ रहा है। पूर्वजों की परंपरा का हवाला देकर रूढ़िवाद में कैद किया जा रहा है।

आदिवासीयों को पुलिस रक्षा-सुरक्षा और न्याय नहीं मिलना आम बात है। जबरदस्ती धर्म थोप कर, हत्या, नरसंहार, बलात्कार, लूट, हमलों का सामना करना पडता हैं। पक्ष और विपक्ष दोनों एक ही सुर आलापते हैं।

वनाचलों में 75 सालों की आजादी के बाद भी, चिकित्सीय और शैक्षणिक व्यवस्था का घोर अभाव बना हुआ है।

संविधान में सोचने की आजादी है। लेकिन 1965 से धर्मांतरण कानून बनें जो संविधान की आत्मा को कुचलते हैं। नई पद्धति और विचारधारा अपनाने से रोकते हैं। आदिवासी, पिछड़े वंचित समाज को ना तो हक मिलता है, ना ही विकास।

समाजों, धर्मों को आपस में लड़वाया जाता है। ऐसा आचरण बड़े राजनैतिक दलों का रहा है। दल-बदलते ही सदन की सदस्यता खत्म नहीं की जाती, संवैधानिक अधिकार छीने जा रहे हैं।

सर्व आदि दल उक्त त्रुटियों को सुधारने के लिए चुनावी मैदान में है। हमारा दल धनाभाव से झूझ रहा है, सौ रुपए का योगदान भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है।

कोरबा लोकसभा क्षेत्र में धर्मपरिवर्तन किए लोगों की संख्या करीब 2.50 लाख है, उन तक पहुंचने का विशेष प्रयास रहेगा।